एक ओर तो रविवार को सम्पन्न हुए जी-20 सम्मेलन में उभरे अनेक अंतरराष्ट्रीय मसलों के बारे में खबरें आ रही हैं, तो वहीं ये पहलू भी सामने आया है कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को मीडिया से बात करने की इजाजत नहीं दी थी। शिखर सम्मेलन के पहले तथा मोदी-बाइडेन मुलाकात के बाद प्रेस अमेरिकी राष्ट्रपति से बात करना चाहता था, लेकिन उन्हें ऐसा करने नहीं दिया गया।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने वियतनाम पहुंचकर यह जानकारी दी जिसे लेकर कांग्रेस के महासचिव जयराम नरेश ने तंज कसते हुए आरोप लगाया है कि 'पीएम मोदी बाइडेन से कह रहे हैं कि न प्रेस कांफ्रेंस करूंगा, न करने दूंगा।' (प्रेस कांफ्रेंस नहीं करेंगे और न ही आपको करने देंगे)। अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष ने जो कुछ वियतनाम में कहा उसके मुताबिक उन्होंने (बाइडेन ने) मोदी से मानवाधिकारों के सम्मान और एक मजबूत समृद्ध देश के निर्माण में नागरिक संस्थाओं और स्वतंत्र प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका के महत्व को उठाया था।
यह अपने आप में बड़ा विरोधाभास है कि एक ओर तो बाइडेन स्वतंत्र प्रेस की भूमिका याद दिला रहे हैं और स्वयं मोदी उतनी ही तेजी से उनकी सीख को दरकिनार करते हुए मीडिया से न स्वयं बात करते हैं और न ही अपने मेहमान को बात करने दे रहे हैं। पहली बात तो यह है कि एक राष्ट्रपति को दूसरे सम्प्रभु मुल्क के राष्ट्राध्यक्ष से यह कहने की आखिर ज़रूरत ही क्यों पड़ी कि वे मानवाधिकारों का सम्मान करें और नागरिक संस्थाओं व स्वतंत्र मीडिया की भूमिका को समझें। क्या अपने देश को हर घड़ी 'लोकतंत्र की जननी' बतलाने वाले राष्ट्रप्रमुख से इस बात की उम्मीद नहीं की जानी चाहिये कि वे इन तथ्यों को पहले से जानें? फिर, एक अन्य राष्ट्राध्यक्ष को क्या यह सीख दी जाने की आवश्यकता इसलिये पड़ गई क्योंकि उसे इस बात का इल्म है कि मेजबान देश में ऐसा नहीं हो रहा है? यानी घर आया मेहमान जानता है कि आप मानवाधिकार का सम्मान नहीं करते, यह देश नागरिक संस्थाओं की भूमिका से अनभिज्ञ है और यहां मीडिया आज़ाद नहीं है।
सम्भव है कि भारत का विदेश मंत्रालय इस बात का कोई जवाबी बयान जारी करे या फिर यह भी हो सकता है कि वियतनाम दौरे के समापन अवसर बाइडेन जब मीडिया को विस्तार से सम्बोधित करें तो इस बाबत और भी खुलासा करें। अमेरिका का विदेश मंत्रालय भी वाशिंगटन से ऐसा कर सकता है। जो भी हो, बाइडेन का यह बयान भारत के लिये शर्मिंदगी लेकर आया है। वह इसलिये कि यहां होते मानवाधिकारों के हनन, नागरिक संस्थाओं व मीडिया की आज़ादी को लेकर गम्भीर स्थिति बन गई है। अधिक कष्टप्रद तो यह है कि जो कुछ भी बाइडेन ने कहा, उसका प्रमाण मोदी स्वयं और तत्काल दे रहे हैं। कदाचित अमेरिकी राष्ट्रपति ने जो कुछ कहा उसका आधार उन तक पहुंचती भारत की इस आशय की खबरें हो सकती हैं। इसके अलावा जून में मोदी जब अमेरिका गये थे तब भी उनसे बार-बार निवेदन किया गया था कि बाइडेन के साथ द्विपक्षीय वार्ता के बाद वे साझा प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करें। मीडिया ही नहीं, सभी तरह के मंचों पर सवालों से भागने वाले मोदी इससे मुकरते रहे।
एक बड़े दबाव के अंतर्गत मोदी इसके लिये राजी तो हो गये परन्तु केवल दो सवाल लेने के लिये तैयार हुए थे। उनसे भारत में होते अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न और देश में धार्मिक आजादी पर होने वाले हमलों से सम्बन्धित प्रश्न किये गये थे। यह भी पूछा गया था कि वे इससे निपटने के लिये क्या उपाय कर रहे हैं। सवालों का तार्किक व सिलसिलेवार उत्तर देने की बजाय प्रधानमंत्री ने उसी गोलमाल ढंग से बात की जिसके लिये वे जाने जाते हैं। इसके साथ ही उनकी भारतीय जनता पार्टी तथा मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों की ट्रोल आर्मी ने सवाल करने वाली मुस्लिम मीडियाकर्मी पर आलोचना की इस कदर बौछारें की कि बाइडेन प्रशासन तक को उसके बचाव में उतरना पड़ा था।
मोदी की पिछली यात्रा जब हुई थी, उसके पहले मणिपुर में साम्प्रदायिक हिंसा के मामले सामने आने लगे थे, धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में भारत की रैंकिंग काफी नीचे जा चुकी थी जिसके सम्बन्ध में कई रिपोर्टें मिल रही थीं तथा हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने बतला दिया था कि मोदी के प्रश्रय से गौतम अदानी दुनिया का दूसरा सबसे अमीर व्यक्ति बना है। इन तमाम विषयों पर उनसे अमेरिकी मीडिया बात करना चाहता था लेकिन जिन मोदी साहब ने खुद के देश में 2014 यानी पीएम की कुर्सी सम्भालने के बाद से कभी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है वे अमेरिका में प्रेस कांफ्रेंस करने के लिये कैसे आसानी से तैयार हो सकते थे जबकि यहां मीडिया का बड़ा हिस्सा सरकार समर्थक है। 2021 में तो खुद बाइडेन एक तरह से व्यंग्य स्वरूप कह चुके थे कि 'अमेरिकी मीडिया की तुलना में भारतीय मीडिया का व्यवहार काफी अच्छा है' (स्वाभाविकत: मोदी ने इस पर रजामंदी दिखलाई थी)। कुल जमा यह देश के लिये शर्मनाक स्थिति है कि मीडिया से उनके बचने की चर्चा देश के बाहर उस व्यक्ति के द्वारा की जाये जिसकी आवाभगत में आपने पलक पांवड़े बिछाये थे तथा राजशाही को मात देने वाली आवभगत की थी। मोदी की मीडिया से बचने की हरकतें न सिर्फ भारतीय लोकतंत्र के लिये बेचैनी पैदा करने वाली हैं, बल्कि यह एक चुनी हुई सरकार द्वारा किया जाने वाला गैरजिम्मेदाराना रवैया है। मोदी को चाहिये कि वे मीडिया से वार्ताएं करें क्योंकि लोकतंत्र का अनिवार्य तत्व संवाद ही है।